क्योंकि हर जान कीमती है: छतीसगढ़ में कंपनी ने दी कर्मचारी की बीमार बेटी के इलाज में 16 करोड़ रुपए की मंजूरी, पेश की मिसाल, अमेरिका से आएगा जोलजेंस्मा इंजेक्शन Read it later

 

छतीसगढ़ में कंपनी ने दी कर्मचारी की बीमार बेटी के इलाज में 16 करोड़ रुपए की मंजूरी
दुर्लभ बीमारी से ग्रसित सृष्टि

छत्तीसगढ़ की एक सरकारी कंपनी अपने कर्मचारी की दो साल की बच्ची के इलाज पर 16 करोड़ रुपये खर्च करने वाली है। यह राशि दुर्लभ बीमारी के इलाज में इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन खरीदने में खर्च की जाएगी। कंपनी ने इलाज के लिए इस राशि को मंजूरी दे दी है। जल्द ही इसकी खरीद प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी।

सतीश कुमार रवि कोल इंडिया की सब्सिडियरी साउथ ईस्टर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड के दीपका कोलफील्ड्स में ओवरमैन के पद पर काम करते हैं। उनकी बेटी सृष्टि रानी स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी नाम की बेहद दुर्लभ बीमारी से जूझ रही है। 

इस रोग में स्पाइनल कॉर्ड और मस्तिष्क के स्टेम में तंत्रिका कोशिकाओं की कमी के कारण मांसपेशियां ठीक से काम नहीं कर पाती हैं। धीरे-धीरे यह रोग बढ़ता है और घातक हो जाता है। जन्म के 6 महीने के अंदर ही सृष्टि की तबीयत खराब होने लगी। 

इस बीच कोविड महामारी के चलते उसके माता-पिता उसे बेहतर इलाज के लिए बाहर नहीं ले जा सके और स्थानीय स्तर पर उसका इलाज जारी रहा।

CIL believes that its employees & their families are its real wealth. It has sanctioned Rs. 16 crores for the Zolgensma injection, the only treatment for Srishti, the 2 year old suffering from Spinal Muscular Atrophy. She is the daughter of Satish Kr. Ravi, overman, Dipka, SECL pic.twitter.com/lxyK9sF2Hw

— Coal India Limited (@CoalIndiaHQ) November 20, 2021

पिछले साल दिसंबर में पता चली दुर्लभ बीमारी

हालत में सुधार न देखकर सतीश दिसंबर 2020 में बच्ची को लेकर क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर गए। यहां उन्हें इस बीमारी के बारे में तब पता चला। डॉक्टरों ने इलाज के लिए Zolgensma इंजेक्शन की जरूरत बताई। 30 दिसंबर को जब सतीश वेल्लोर से सृष्टि लौट रहे थे तो छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के दीपका स्थित अपने आवास पर जा रहे थे। 

रास्ते में सृष्टि की तबीयत बिगड़ गई। उन्हें SECL द्वारा पैनलबद्ध अपोलो अस्पताल बिलासपुर में भर्ती कराना पड़ा। वहां काफी देर तक इलाज कराने के बाद सतीश ने सृष्टि का इलाज एम्स दिल्ली में करवाया। फिलहाल बच्ची का इलाज घर पर किया जा रहा है, जहां वह पोर्टेबल वेंटिलेटर पर है।

इंजेक्शन की कीमत इतनी कई ज्यादा

डॉक्टरों ने बताया कि इस दुर्लभ बीमारी के इलाज के लिए एक अमेरिकी इंजेक्शन मौजूद है. इसे किसी भारतीय नियामक ने मंजूरी नहीं दी है, लेकिन अमेरिकी नियामक ने इसके इस्तेमाल को मंजूरी दे दी है। इसकी कीमत करीब 2 मिलियन डॉलर यानी करीब 16 करोड़ रुपये होगी. कीमत इतनी अधिक थी कि सतीश और उसकी पत्नी को कुछ समझ नहीं आ रहा था।

कंपनी ने पहल कर पेश की नजीर

एसईसीएल के जनसंपर्क अधिकारी डॉ. सनिश चंद्र ने कहा, “कंपनी प्रबंधन ने समस्या का पता लगाने के बाद सतीश की मदद करने का फैसला किया। इसके लिए कोल इंडिया की मंजूरी की आवश्यकता थी। हाल ही में, कोल इंडिया के अध्यक्ष ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए। 

डॉ चंद्रा कहते हैं, कंपनी ने न केवल अपने परिवार की बेटी की जान बचाने के लिए यह बड़ी पहल की, बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य उपक्रमों और अन्य संस्थानों के लिए भी एक मिसाल कायम की है।

Zolgensma इंजेक्शन क्या है?

Zolgensma इंजेक्शन को नोवार्टिस नाम की एक कंपनी तैयार करती है। कम्पनी का दावा है कि यह इंजेक्शन एक तरह का जीन थैरेपी ट्रीटमेंट है। जिसे एक बार लगाया जाता है। इसे स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी से जूझने वाले 2 साल से कम उम्र के बच्चों को दिया जाता है।

स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी बीमारी 5 तरह की होती है 

  • टाइप-0: यह उस वक्त होती है जब बच्चा मां के पेट में पल रहा होता है। जन्म से ही बच्चे में जोड़ों का दर्द रहने लगता है। हालांकि, ऐसे केस दुनिया में कम ही सामने आए हैं।
  • टाइप-1: ऐसा होने पर बिना किसी की हैल्प से बच्चा अपना सिर तक नहीं मूव पाता है। बच्चे के हाथ-पैर ढीले रह जाते हैं। कुछ निगलने में भी परेशानी आती है।
  • टाइप-2: इस तरह के मामले 6 से 18 महीने के बच्चे के भीतर सामने आते हैं। हाथ से ज्यादा असर पैरों पर दिखने लगता है। नतीजा ये कि वो खड़े नहीं हो पाते हैं।
  • टाइप-3: 2-17 साल के लोगों में ये लक्षण दिखाई हैं। टाइप-1 व 2 के मुकाबले इसमें बीमारी का असर कम दिखता है लेकिन भविष्य में व्हीलचेयर की जरूरत हो सकती है।
  • टाइप-4: स्पाइनल मस्कुलर अट्रॉफी का यह टाइप वयस्कों में दिखने में आता है। मांसपेशियां पूरी तरह से कमजोर हो जाती है और सांस लेने में परेशानी होती है। हाथ-पैरों पर असर नजर आता है।

आखिर इंजेक्शन इतने महंगे क्यों हैं?

Zolgensma इंजेक्शन स्विस कंपनी नोवार्टिस द्वारा निर्मित है। कंपनी का दावा है कि यह इंजेक्शन एक तरह का जीन थेरेपी ट्रीटमेंट है। जिसे एक बार लगाया जाता है। यह स्पाइनल मस्क्यूलर अट्रॉफी से पीड़ित 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को लगाया जाता है।

यह इंजेक्शन इतना महंगा क्यों है, इसके सवाल पर नोवार्टिस के सीईओ नरसिम्हन कहते हैं, “चिकित्सा जगत में जीन थेरेपी एक बड़ी खोज है। जो लोगों में उम्मीद जगाती है कि एक खुराक एक घातक आनुवंशिक बीमारी को ठीक कर सकती है जो पीढ़ियों से चली आ रही है।

इंजेक्शन ट्रायल के तीसरे चरण की समीक्षा के बाद इंस्टीट्यूट फॉर क्लीनिकल एंड इकोनॉमिक ने इसकी कीमत 9-15 करोड़ रुपये के बीच तय की थी। इसे देखते हुए नोवार्टिस ने इसकी कीमत 16 करोड़ रुपये रखी है।

यह इंजेक्शन कैसे काम करता है?

ज़ोल्गेन्स्मा इंजेक्शन उस जीन की जगह लेते हैं जो स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी का कारण बनता है एक नए जीन के साथ। ऐसा होने के बाद यह रोग शरीर में दोबारा नहीं होता क्योंकि बच्चे के डीएनए में एक नया जीन शामिल हो जाता है।

ज़ोल्गेन्स्मा कितना प्रभावी है?

इसके प्रभाव को देखने के लिए स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी वाले 21 बच्चों पर क्लिनिकल ट्रायल किया गया। इसके नतीजे मार्च 2019 में आए। नतीजों के मुताबिक, 21 में से 10 बच्चे बिना किसी सहारे के बैठ सके। वैज्ञानिकों के लिए ये नतीजे चौंकाने वाले थे, क्योंकि यह अब तक संभव नहीं था।

ज़ोल्गेन्स्मा का इंजेक्शन विकल्प क्या है?

ड्रग डॉट कॉम वेबसाइट के मुताबिक, ज़ोलगेन्स्मा का इंजेक्शन स्पिनराजा का एक विकल्प है। इसे साल में 4 बार किया जाता है। पहले साल के लिए करीब 5 करोड़ रुपये का भुगतान करना है। इसके बाद हर साल करीब 2 करोड़ रुपये के इंजेक्शन लगाए जाते हैं। जो बूढ़े लगते हैं

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