बच्चों को दी जाने वाली लगभग दो-तिहाई दवाइयां होती हैं बेकार ! पैरेंट्स हो जाएं सावधान Read it later

Medicines Ineffective: मां-बाप अपने बच्चों की सेहत (Child Health) के लिए बहुत चिंतित रहते हैं। उनके नन्हें-मुन्ने को अगर छींक भी आ जाए तो पैरेंट्स का अलर्ट मोड ऑन हो जाता है। वे हर हाल में यही चाहते हैं कि बच्चा स्वस्थ रहे। उन्हें बच्चों की बीमारी (Child Diseases) का डर सताता रहता है। बीमार बच्चे के इलाज (Child Disease and Treatment) के लिए मां-बाप तुरंत डॉक्टर के यहां हाजिरी लगाने पहुंच जाते हैं, जोकि करना भी चाहिए। यहां तक तो सब ठीक रहता है। दिक्कत शुरू तब होती है, जब डॉक्टर हाथ में दवाओं की पर्ची थमा देता है। दरअसल बच्चों को बीमारी में जो दवाइयां दी जाती हैं उनमें से कुछ की बिलकुल जरुरत नहीं होती है। हमारी इस बात का आधार है- ड्रग्स फॉर चिल्ड्रन, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट। यह रिपोर्ट वाकई में आंख खोलने वाली है। आइए सबसे पहले जान लेते हैं कि बच्चों को अधिकतर कौन-कौन सी बीमारी के लिए दवाइयां दी जाती है।

  • 1) ऊपरी श्वास मार्ग के इन्फेक्शन में एंटीबायोटिक दवाइयों का उपयोग जबकि ये इन्फेक्शन आम तौर पर वायरस से होते हैं।
  • 2) ऊपरी श्वास मार्ग में जकड़न (कंजेस्शन) के लिए डीकंजेस्टेंट (जकड़न हटाने वाली) दवाइयों का अधिक मात्रा में सेवन करना। इसका प्रतिकूल असर भी होता है।
  • 3) बुखार के लिए एंटीपायरेटिक (बुखाररोधी) दवाइयों का उपयोग।
  • 4) दस्त (अतिसार) में दवाइयों का उपयोग।
  • 5) उल्टियां रोकने के लिए मुंह से वमनरोधी दवाइयां देना।
  • 6) अनिद्रा से परेशान बच्चों या गलती से अति-सक्रिय घोषित बच्चों को नींद की दवाई (सिडेटिव्स) देना।
  • 7) भूख बढ़ाने के लिए दवाइयों का उपयोग।
  • 8) पेट दर्द के लिए ऐंठनरोधी (स्पाज़्मोलाइटिक) दवाइयों का उपयोग।
  • 9) बिस्तर गीला करने वाले बच्चों के लिए ट्रायसायक्लिक एण्टी-डिप्रेजेन्ट दवाइयों का उपयोग। दुर्घटनावश विषाक्तता से होने वाली बच्चों की मौतों में एक चौथाई इन्हीं के कारण होती है।
  • 10) बार-बार ऊपरी श्वास मार्ग के इन्फेक्शन से ग्रस्त बच्चों में इसकी रोकथाम के लिए इमुनोग्लोबुलीन का उपयोग।
    बच्चों को जो दवाइयां दी जाती हैं, उनमें से 70% दवाई ऊपर लिखी बीमारी के लिए ही दी जाती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग दो-तिहाई दवाइयां या तो फालतू होती हैं या शायद बहुत कम महत्व रखती हैं।

बच्चों की कुछ परेशानियों को जानबूझकर दवाई के दायरे में लाना खतरनाक हो सकता है। इसका बच्चों की सेहत पर आने वाले दिनों में बुरा असर पड़ सकता है। बिना जांच-पड़ताल के बच्चों को दवाइयां देते रहने का असर यह होता है कि बचपन में ही बच्चे इस बात को सीखने लगते हैं कि तकलीफों का हल दवाइयों में है। साफ है कि बच्चों को हर तकलीफ के लिए दवाई देने से पहले सोचना बेहद जरूरी है।

 

ये भी पढ़ें –

Chyawanprash Purity: ऐसे करें असली च्‍यवनप्राश की पहचान

 

Like and Follow us on :

Google News |Telegram | Facebook | Instagram | Twitter | Pinterest | Linkedin

Was This Article Helpful?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *