Malmas 2022: जानिए मलमास में क्या करना होता है अति उत्तम Read it later

Malmas 2022: इस संसार के प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्यदेवता दिसंबर माह के मध्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं। वहीं 16 दिसंबर को सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास की शुरुआत हो जाती है। मलमास या खरमास को हिंदू सनातन धर्म में  पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में इस मास का विशेष महत्व माना गया है। पूरे देश में हिन्दू समाज के धर्मनिष्ठ लोग इस पूरे मास में पूजा, भगवद्भक्ति, व्रत, जाप और योग जैसे आदि धार्मिक कार्यों में संलग्न रहते हैं।

मलमास (Malmas 2022)  15 दिसंबर 2022 से 15 जनवरी 2023 तक रहेगा। मान्यता है कि इस अवधि में किए गए धार्मिक कार्य से किसी अन्य माह में की गई पूजा से 10 गुना अधिक फल मिलता है। यही कारण है कि श्रद्धालुगण अपनी पूरी भक्ति और शक्ति के साथ इस माह में भगवान को प्रसन्न करके इस लोक और परलोक में अपने जीवन को बेहतर बनाने का प्रयास करते हैं।

 

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अब आप  सोच रहे होंगे कि यदि ये मास इतना ही प्रभावशाली और पवित्र है तो फिर इसमें शुभकार्य वर्जित क्यों होते हैं। आइए हम आपको बताते हैं।

वशिष्ठ सिद्धांतनुसार भारतीय ज्योतिष सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है, जो प्रत्येक 32 महीनों में 16 दिनों और 8 घटियों के अंतर के साथ आता है। यह सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच के अंतर को संतुलित करता प्रतीत होता है।

भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सौर वर्ष 365 दिन और लगभग 6 घंटे का होता है, जबकि चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन साल में लगभग एक महीने के बराबर हो जाता है। इस अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त मास होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।

 

इसलिए पड़ा मल मास नाम हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कार्य वर्जित हैं। माना जाता है कि अधिकता के कारण यह पिंड मैला हो जाता है। इसलिए, हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत अनुष्ठान जैसे नामकरण, यज्ञ अग्नि, विवाह और सामान्य धार्मिक अनुष्ठान जैसे गृह प्रवेश, नए कीमती सामान की खरीद आदि आमतौर पर इस महीने के दौरान नहीं किए जाते हैं। इस मास को मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मल मास रखा गया है।

 

क्यों और कैसे पड़ा पुरुषोत्तम मास का नाम

भगवान विष्णु स्वयं अधिकमास के स्वामी हैं। क्योंकि हर मास का एक देवता उस संबंधित मास का शासक होता है। ऐसे में अधिकमास का कोई शासक नहीं था। इस कारण अधिकमास की बहुत निन्दा होने लगी तब अधिकमास भगवान विष्णु की शरण में गया। तब भगवान विष्णु ने कहा – “मैं इसे सर्वोपरि अपने समान बनाता हूँ। मैंने इस मास को गुण, यश, प्रभाव, सगैश्वर्य, पराक्रम व भक्तों को वरदान देने की क्षमता आदि सभी गुण सौंपे हैं।

 

अहमेते यथा लोके प्रतिष्ठा: पुरुषोत्तम:

तथायमापि लोकेषु प्रतिष्ठाः पुरुषोत्तमः

 

इन्हीं गुणों के वजह से जिस तरह  वेदों, लोकों और शास्त्रों में मुझे ‘पुरुषोत्तम’ के नाम पहचाना जाता है, उसी तरह ये मलमास भी भूतल पर ‘पुरुषोत्तम’ नाम से जाना जाएगा और मैं स्वयं इसका स्वामी होऊंगा।  इस तरह हिंदू सनातन धर्म में अधिक मास, मलमास को ‘पुरुषोत्तम मास’ के नाम से जाना गया।

 

अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार ऐसे समझें

अधिकमास के अधिपति भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का एक नाम है। इसलिए अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस विषय में एक बड़ी रोचक कथा पुराणों में पढ़ी जा सकती है। ऐसा कहा जाता है कि भारतीय ऋषियों ने अपनी गणना पद्धति से प्रत्येक चंद्र मास के लिए एक देवता का निर्धारण किया।

चूंकि अधिकमास सौर और चंद्र महीनों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिए प्रकट हुआ था, कोई भी देवता इस अतिरिक्त महीने का शासक बनने के लिए तैयार नहीं था। ऐसे में ऋषियों ने भगवान विष्णु से इस मास का भार अपने ऊपर लेने का आग्रह किया। भगवान विष्णु ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मल मास के साथ पुरुषोत्तम मास हो गया।

 

हर इंसान के लिए खास होता है ये अधिकमास (Malmas 2022)

अधिकमास को पुरुषोत्तम मास के रूप में मानने का एक अर्थ ये भी है कि इस मास या महीने को हर व्यक्ति विशेष के लिए तन और मन से पवित्र होने का समय माना गया है। इस माह के समय में भक्त व्रत, उपवास, ध्यान, योग और भजन-कीर्तन-ध्यान में लीन रहकर स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर देते हैं। यही कारण है कि ये समय मनुष्य को अपनी निम्न चेतना को उच्चतम और श्रेष्ठ चेतना में परिवर्तित करने का समय माना गया है।

निम्न चेतना से तात्पर्य  कि जिस इंसान में मैं का भाव जिसे अहम या अहंकार का भाव माना गया है। वहीं उच्चतम या श्रेष्ठ चेतना से आशय है हम का भाव यानी प्राणी मात्र के लिए सोचने का भाव‚ दयालुता का भाव। श्रेष्ठ चेतना पाकर मन से नकारात्मकता को निकालने का ये मास माना गया है और इसी कारण इसे पुरुषोत्तम मास यानी उत्तम पुरुष बनने का माह कहा जाता है।

 

अधिकमास का पौराणिक महत्व व आधार क्या हैॽ

अधिकमास के लिए पुराणों में बड़ी ही मनमोहक व सुंदर कथा कही गई है।  ये कथा राक्षस राजा हिरण्यकश्यप के वध से संबंधित है। पुराणों में  उल्लेखित कथानुसार एक बार दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या से भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर अमरता का वरदान मांगा लिया। अमरत्व का वरदान देना वर्जित होने से ब्रह्मा जी ने हिरण्यकश्यप से कोई दूसरा वरदान मांगने को कहा। तब हिरण्यकश्यप ने वरदान मांगा कि संसार का कोई पुरुष, स्त्री, पशु, देवता या दानव उसे न मार सके। हर वर्ष के 12 महीनों में किसी भी मास में वो मृत्यु को प्राप्त न हो।

जब वह मरे तो न दिन हो न रात हो। वहीं उसे न तो किसी अस्त्र से मारा जा सके  और नही शस्त्र का घात उसकी मौत का कारण बने। उसे न तो कोई घर में मार सके और नहीं कोई घर के बाहर मार सके। ये वरदान मिलते ही हिरण्यकश्यप ने खुद को अमर मान कर भगवान घोषित कर दिया।

समय आने पर भगवान विष्णु ने अधिक के महीने में ही नरसिंह अवतार यानी आधे मनुष्य व आधे शेर के अवतार में खम्भां चीर कर प्रकट हुए और संध्याकाल में दरवाजे यानी दहरी या चौखट के नीचे अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप की छाती को चीर कर हिरण्यकश्यप को मृत्युलोक भेज दिया।

 

क्या और क्यों है अधिकमास का महत्व

हिंदू सनातन धर्म  मान्यतानुसार हर जीव या प्राणी मात्र पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पांच महाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी समाए हैं। अपने स्वभाव के अनुसार ये पंच तत्व प्रत्येक जीव के स्वभाव को अधिक या कम मात्रा में निर्धारित करते हैं। अधिकमास में सभी धार्मिक गतिविधियों, चिंतन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधकगण अपनी देह में निहित इन पांच तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करते हैं।

इस पूरे माह में हर व्यक्ति धार्मिक व आध्यात्मिक प्रयासों से अपनी भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति व पवित्रता में तंल्लिन रहता है। इस प्रकार अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में खुद को बाहर से साफ करता है और परम पवित्रता को प्राप्त कर नई ऊर्जा से ओत-प्रोत हो जाता है। मान्यता है कि इस दौरान किए गए प्रयासों से सभी कुंडली दोष भी दूर हो जाते हैं।

 

अधिकमास में पूर्ण फलप्राप्ति के लिए का करें

सामान्यतया  हिंदू श्रद्धालुगण अधिकमास में व्रत, पूजा, धार्मिक किताबों का पठन-पाठन‚ ध्यान, भजन, कीर्तन, ध्यान को अपनी दिनचर्या में उतारते हैं। पौराणिक मान्यताओं और सिद्धांतो के अनुसार इस मल मास याअधिक मास में श्रीमद् देवी भागवत, श्रीमद् भगवतम‚ श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन करना विशेष फलदायी माना गया है।

अधिकमास के अधिष्ठाता देवता भगवान विष्णु स्वयं हैं, इसलिए इस पूरे पूर्णकाल में विष्णु मंत्रों का जप विशेष रूप से लाभकारी होता है। ऐसी मान्यता है कि अधिकमास में विष्णु मंत्र का जप करने वाले भक्तों पर भगवान विष्णु स्वयं कृपा बरसाते हैं, उनके पापों को दूर कर देते हैं और उनकी सभी तरह की मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।

 

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डिस्क्लेमर: उपरोक्त लेख में दी गई जानकारी  हिंदू मान्यता पर आधारित है। हम ये दावा नहीं करते कि लेख में दी गई बातों को अपनाने से आपके कार्य सटीक रूप से पूरे होंगे। क्योंकि किसी भी धर्म में विश्वास या यकीन की सकारात्मक ऊर्जा का अत्यधिक महत्व होता है और यदि ये ऊर्जा आप में होगी तो आप स्वयं ही आपने कार्य खुद बनाने में सक्षम होंगे।  फिर भी हम आप से कहेंगे कि बेहतर परिणामों के लिए किसी ज्योतिषाचार्य से परामर्श जरूर लें।

 

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